एक समय की बात है, एक तालाब के किनारे एक कछुआ और दो हंस रहते थे। कछुआ तालाब में रहता था। उसकी हंसों के साथ दोस्ती हो गयी थी, जो उससे मिलने हमेशा तालाब तक आते रहते थे। सब बहुत ख़ुशी ख़ुशी मिलजुल कर रहते थे।
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तीनों दोस्त, कछुआ और हंसों ने भी उस तालाब को छोड़ कर कहीं और जाने का फ़ैसला किया, जहाँ बहुत पानी हो, और वहीँ हमेशा के लिए बसने का विचार किया। पर दुसरे जगह जाना भी मुश्किल था। हंसों के लिए तो आसान था, क्यूंकि उन्हें उड़ना आता था पर कछुआ के लिए यह बहुत ही मुश्किल काम था। कछुआ को उड़ना तो आता नहीं था और ज़मीन पर उतनी दूर चलना भी आसान नहीं था।
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शहर
के लोगों ने ऐसा नज़ारा पहली बार देखा था। सभी बहुत आश्चर्यचकित हुए। सभी लोग हसने लगे और
तालियाँ बजाने लगे, हँसो और कछुए को एसे उड़ते देख कर। लोग जोर जोर से
हल्ला करने लगे और हंसने लगे, यह सब देख कर कछुए को गुस्सा आने लगा। अपनी
जिज्ञासा को रोकने के जगह पर, वो बोलने के लिए मुंह खोला, और उसकी पकड़ छुट
गयी, और वो गिर कर मर गया। इस तरह, कछुआ अपनी मुर्खता और बेसब्री से मारा
गया।
कहानी का उपदेस-
- अपने दोस्तों की बातें हमेशा सुननी चाहिए।
- बिना कारण कभी भी नहीं बोलना चाहिए। तभी बोलें , जब ज़रूरी हो।