एक समय की बात है, एक तालाब के किनारे एक कछुआ और दो हंस रहते थे। कछुआ तालाब में रहता था। उसकी हंसों के साथ दोस्ती हो गयी थी, जो उससे मिलने हमेशा तालाब तक आते रहते थे। सब बहुत ख़ुशी ख़ुशी मिलजुल कर रहते थे।
एक
साल वहां आकाल पड़ा। बहुत दिनों तक बारिश नहीं हुई। सब खेत खलिहान, तालाब
सुख गए। पानी का एक बूँद भी नहीं बचा, किसीके पीने के लिए। सारे जानवर
पानी के आभाव और तेज़ गर्मी की वजह से मरने लगे। तब बहुत सारे जानवरों ने
दूसरी जगह जाना तय किया, जहाँ पर पानी भी हो और खेत-खलिहान हरे-भरे हों।
तीनों दोस्त, कछुआ और हंसों ने भी उस तालाब को छोड़ कर कहीं और जाने का फ़ैसला किया, जहाँ बहुत पानी हो, और वहीँ हमेशा के लिए बसने का विचार किया। पर दुसरे जगह जाना भी मुश्किल था। हंसों के लिए तो आसान था, क्यूंकि उन्हें उड़ना आता था पर कछुआ के लिए यह बहुत ही मुश्किल काम था। कछुआ को उड़ना तो आता नहीं था और ज़मीन पर उतनी दूर चलना भी आसान नहीं था।
तीनों दोस्तों ने परामर्श करके इस परेशानी का हल निकलने की सोची। एक हंस ने एक तरीका सोचा की अगर कछुआ अपने दांतों से लकड़ी की डंटे को पकड़ ले, तो डंटे के दोनों किनारों को हंस अपने मुंह में दवा कर उड़ जाएंगे। इसमें केवल एक ही दिक्कत थी, की कछुआ कुछ ना बोले नहीं तो वो गिर जाएगा और मर जाएगा। दोनों हंस बहुत चिंतित थे, क्यूँकि कछुआ के लिए चुप रहना बहुत मुश्किल था, वो बहुत बातूनी था। कछुए को बात समझ में आई, और उसने प्रतिज्ञा ली की वो पुरे रास्ते चुप रहेगा।
यात्रा शुरु करने से पहले, हंसों ने फिर से अपने मित्र कछुआ को समझाया, की किसी भी स्तिथि में अपना मुंह ना खोले। हिदायत दे कर, हंसों ने अपने चोंच में लकड़ी को पकड़ लिया, और कछुए ने लकड़ी के बीच वले हिस्से को दांतों में पकड़ा। और इस तरह उनकी यात्रा शुरु हुई। वे बहुत ऊँचा ऊँचा उड़ते हुए पहाड़, खेत, मैदान के ऊपर से जा रहे थे। अंत में एक शहर के ऊपर से गुजरे।
शहर
के लोगों ने ऐसा नज़ारा पहली बार देखा था। सभी बहुत आश्चर्यचकित हुए। सभी लोग हसने लगे और
तालियाँ बजाने लगे, हँसो और कछुए को एसे उड़ते देख कर। लोग जोर जोर से
हल्ला करने लगे और हंसने लगे, यह सब देख कर कछुए को गुस्सा आने लगा। अपनी
जिज्ञासा को रोकने के जगह पर, वो बोलने के लिए मुंह खोला, और उसकी पकड़ छुट
गयी, और वो गिर कर मर गया। इस तरह, कछुआ अपनी मुर्खता और बेसब्री से मारा
गया।
कहानी का उपदेस-
- अपने दोस्तों की बातें हमेशा सुननी चाहिए।
- बिना कारण कभी भी नहीं बोलना चाहिए। तभी बोलें , जब ज़रूरी हो।